tag:blogger.com,1999:blog-712112680955363162.post8007358052701397282..comments2023-10-22T16:14:38.270+05:30Comments on हिंदी सोपान, मलप्पुरम: मुफ्त में ठगी आस्वादन टिप्पणीhindisopanhttp://www.blogger.com/profile/02907965953439074232noreply@blogger.comBlogger2125tag:blogger.com,1999:blog-712112680955363162.post-24780155938167340892014-01-15T11:47:10.727+05:302014-01-15T11:47:10.727+05:30आस्वादन टिप्पणी
मुफ़्त में ठगी
"...आस्वादन टिप्पणी<br /> मुफ़्त में ठगी<br /><br /> " मुफ़्त में ठगी " श्री .रामकुमार आत्रेय की कविता है। वे उपभोक्तवाद के शिकार आम जनता की चर्चा इसमें कर रहे हैं । <br /> बूढ़ा किसान कुछ बीज और रासायनिक खाद खरीदकर घर आता है। तब उसे मालूम होता है कि उसके तीनों बौरों में पाँच किलो ठगी भी हैं।वह शंका<br />समाधान करने के लिए व्यापारी के पास पहूँचता है- थके पाँवों को घसीटते हुए<br />तथा भूखा-प्यासा होकर । उसकी शंका यह थी कि उसे विश्वास के स्थान पर<br />ठगी क्यों दी गई । दूकानदार उसे समझाता है कि उसे ठगी मुफ़्त में दी है।<br /> कोई पैसा वसूल नहीं किया है। दूकानदार वर्तमान व्यापार का परिचय देता है<br />कि अब हर चीज़ के साथ कुछ मुफ़्त मिलता है।जैसे, चाय के पैकेट के साथ<br />कप, टूथपेस्ट के साथ ब्रश आदि...किसान संतुष्ट होकर घर लौटता है।उसकी<br />चिंता यह थी कि मुफ्त में कुछ भी मिले फायदा ही होता है।चाहे वह ठगी ही क्यों न हो !<br /> इस कविता में " किसान " देहाती आम आदमी का प्रतिनिधि है।" उपहार "<br />ठगी का प्रतीक है।यह छोटी-सी कविता बहूत संप्रेषणीय है। किसी भी पाठक के दिल को छूने की ताकत इसमें है।आजकल उपभोक्तावादी संस्कृति सौदागिरी के नए-नए तंत्र गढ़ती है।खरीदनेवाले को यह पता नहीं चलता कि उसने धोखा खाया है। प्रस्तुत कविता इस "ठगी " पर व्यंग्य करती है।ASOK KUMARhttps://www.blogger.com/profile/14233563482040342956noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-712112680955363162.post-50419462259957204912014-01-15T11:40:32.271+05:302014-01-15T11:40:32.271+05:30very helpful.....very helpful.....ASOK KUMARhttps://www.blogger.com/profile/14233563482040342956noreply@blogger.com