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डाउनलोड मैनेजर इंटरनेट से डाउनलोडिंग को बहुत आसान बना देते है । ज्यादा फाइल डाउनलोड करनी हो या कोर्इ बडी फाइल डाउनलोड करनी हो सबसे बेहतर विकल्प डाउनलोड मैनेजर ही होते है । ऐसे में एक नया बढि.या विकल्प है eagleget इसमें डाउनलोड मैनेजर की सभी जरुरी खूबिया तो है ही साथ ही ये आपको आासानी से यूटयूब विडियो डाउनलोड करने की अतिरिक्त सुविधा भी देता है ।

ये सभी प्रमुख ब्राउजर जैसे फायरफाक्स, ओपेरा, इंटरनेट एक्सप्लोरर और क्रोम के साथ भी जुड जाता है यानि आप सीधे ब्राउजर से ही इसका उपयोग कर सकते हैं और चाहें तो बिना किसी ब्राउजर के सीधे ही इसका प्रयोग कर सकते हैं ।

एक बार इसें इंस्टाल करने के बाद ये आपके ब्राउजर में किसी लिंक पर राइट किलक करने पर तो उपयोग किया जा ही सकता है साथ ही यूटयूब पर आपको विडियो पर एक अतिरिक्त डाउनलोड बटन भी दिखार्इ देगा जिस पर किलक करके आप यूटयूब विडियो को अलग अलग फार्मेट में किसी एक विकल्प में डाउनलोड कर पायेंगें ।

कुछ इस तरह






साथ ही आप चाहे तो सीधे लिंक से ही यूटयूब विडियो डाउनलोड कर सकते है इसके लिए आपको पहले तो  डाउनलोड मैनेज्र को शुरु करना होगा फिर Video sniffer पर किलक करके दांयी ओर खुली छोटी विंडो में लिंक को टाइप या पेस्ट करना होगा । थोडी देर में नीचे Quality के सामने अपनी पसंद का फार्मेट चुने और उसके सामने रेडियो बटन सेलेक्ट करे फिर नीचे Download पर किलक कर दे आपका यूटयूब विडियो डाउनलोड होने लगेगा ।


कुछ इस तरह


इसमें कुछ अतिरिक्त सुविधांए भी है जैसे आप तय कर सकते है कि एक निशिचत समय में डाउनलोड मैनेजर खुद ही आपकी लिंक की हुर्इ फाइल्स को डाउनलोड करना शुरु कर दे ( मुख्य चित्र देंखें )

और इस टूल की सबसे अच्छी बात तो ये है कि ये बिल्कुल मुफ्त है और आाकार में भी छोटा सिर्फ 4 एम बी का है ।

इसे डाउनलोड करने यहां किलक करें ।

दूसरी अतिरिक्त डाउनलोड लिंक यहां है ।



उम्मीद है ये टूल आपके काम आयेगा ।
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हिंदी साहित्य  कुरुक्षेत्रा         रामधारी सिंह दिनकर
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आज़ादी में पत्रकारिता का योगदान 
डॉ. के. एन. पी. श्रीवास्तव

भारत के पत्रकार मूलतः जनता का प्रतिनिधि मानकर पत्रकारिता के क्षेत्र में आए थे। यदि सही ढंग से आँका जाए तो स्वतंत्रता की पृष्ठभूमि पत्रों एवं पत्रकों ने ही तैयार की, जो आगे चलकर राजनेताओं एवं स्वतंत्रता संग्रामियों को पहले पत्रकार बनने के लिए प्रेरित किया। पं, बालगंगाधर तिलक, लाला लाजपत राय, महात्मा गांधी, जवाहर लाल नेहरू एवं डॉ. राजेंद्र प्रसाद आदि सभी पत्रकारिता से संबद्ध रहे।
कांग्रेस भी जब दो विचारों में विभाजित हुई, उस समय भी गरम दल का दिशा-निर्देश 'भारतमित्र', अभ्युदय', 'प्रताप', 'नृसिंह', केशरी एवं रणभेरी आदि पत्रों ने किया तथा नरम दल का 'बिहार बंधु', 'नागरीनिरंद', 'मतवाला', 'हिमालय' एवं 'जागरण' ने किया।
पत्रकारों के संघर्ष का युगभारतेंदु युग मात्र साहित्यिक युग ही नहीं, अपितु स्वतंत्रता एवं राष्ट्रीय जागरण का युगबोध करानेवाला युगदृष्टा का युग था। महात्मा गांधी के लिए यही प्रेरक युग कहा जाना पत्रकारिता का शाश्वत सत्य होगा। स्वतंत्रता आंदोलन के लिए राजनेताओं को जितना संघर्ष करना पड़ा, उससे तनिक भी कम संघर्ष पत्रों एवं पत्रकारों को नहीं करना पड़ा। बुद्धिजीवी, ऋषियों की मौन साधना, तपस्या और त्याग इतिहास की धरोहर है, जिसे मात्र साहित्य तक सीमित नहीं रखा जाना चाहिए, बल्कि स्वतंत्रता की बलिवेदी पर आहूति करनेवालों को शृंखलाबद्ध समूह के रूप में भी माना जाना चाहिए।
तकनीकी रूप में प्रारंभिक पत्रकार स्वयं रिपोर्टर, लेखक, लिपिक, प्रूफरीडर, पैकर, प्रिंटर, संपादक एवं वितरक भी थे। क्रूरता, अन्याय, क्षोभ, विरोध, क्लेश, संज्ञास एवं गतिरोध उनकी दिनचर्या थी, फिर भी वे अटल थे, अडिग थे, क्योंकि उनके समक्ष एक लक्ष्य था। वे देशभक्त थे। देशभक्त के समक्ष सभी अवरोधों, प्रतिरोधों एवं बाधक विचारों का खंडन उनका उद्देश्य था। ऐसी स्थिति में ब्रिटिश सरकार की दमनात्मक नीतियों के समक्ष सरकारी सहायता कौन कहे, साधारण सहिष्णुता भी उपलब्ध नहीं, जो आज सर्वत्र दृष्टव्य है। भले ही इनकी दिशाविहीनता के कारण उन आदर्शों के निकट नहीं है। उस समय न नियमित पाठक थे, न नियमित प्रेस अथवा प्रकाशन। मुद्रण के लिए दूसरे प्रेसों के समक्ष हाथ-पाँव जोड़कर चिरौरी करनी पड़ती थी, ताकि कुछ अंक निकल पाएँ। ग्राहकों और पाठकों की स्थिति यह थी कि महीनों-महीना पत्र मँगाते थे और पैसा माँगने पर वे वापस कर देते थे। ऐसी स्थिति में प्रायः सभी पत्र-पत्रिकाओं में प्रार्थना, तगादा, चेतावनी औऱ धमकियों के लिए कतिपय शीर्षकों में प्रकाशन होता था- जैसे 'इसे भी पढ़ लें' विज्ञापन एवं सूचना के रूप में आदि-आदि।
उदंड मार्तंड से शुरुआत
निःसंदेह हिंदी का सर्वप्रथम समाचार पत्र 'उदंड मार्तंड' ३०.०५.१८२६ को कलकत्ता से प्रकाशित हुआ था, जिसके संचालक पं. युगल किशोर थे एवं सन १८९१ को गोरखपुर से मुद्रित 'विद्याधर्म दीपिका' भारत वर्ष की सर्वप्रथम निःशुल्क पत्रिका थी, किंतु आंग्ल महाप्रभुवों के प्रभाव में चल रहे पाठकों के अभाव में यह पत्रिका भी अनियमित होते-होते काल-कवलित हो गई।
भारत वर्ष की पत्रकारिता इसी पृष्ठभूमि में १८वीं सदी के उत्तरार्द्ध में अंकुरित हुई। ईस्ट इंडिया कंपनी के स्थापनोपरांत कई स्वतंत्र व्यापारी भी यहाँ प्रवेश पा चुके थे। ये व्यापारी भारतीय जन जीवन के साथ अपनत्व स्थापित कर स्वतंत्र पत्र-पत्रिका निकालने को तत्पर हुए। विलियम बोल्टस प्रथम व्यापारी था जिसने १७६४ में प्रथम विज्ञापन प्रसारित किया कि 'कंपनी शासकों की गतिविधियों से जन सामान्य को अवगत कराने के लिए वह पत्र निकालना चाहता है। कंपनी इस विज्ञापन को पढ़ते ही उसे देश निर्वासित कर इंग्लैंड वापस भेज दिया। अंग्रेज़ों का पत्र, पत्रिकाओं, पत्रकारों एवं पत्रकारिता के खिलाफ़ दमन का श्रीगणेश यहीं से प्रारंभ हुआ, किंतु वोल्टस द्वारा लगाया हुआ बीज अंकुरित होकर अगस्टस हिकी के हाथों में आकर एक पत्र के रूप में प्रस्फुटित हो गया जिसका नाम पड़ा 'बंगाल गजट एंड कलकत्ता जनरल एडवर टाइज़र' जिसने 'हिकीगजट' के नाम से १७८० में प्रथम पत्र के रूप में जन्म लिया। वारेन हेस्टिंग्स उस समय भारत वर्ष का गवर्नर जनरल था, जो अपने अथवा अपने मंत्रिमंडल के प्रतिकूल एक साधारण आलोचना भी बर्दाश्त नहीं कर सकता था। हिकीगजट इसका कटु आलोचक बन गया और फलस्वरूप १४-११-१७८० को प्रथम दमनात्मक प्रहार के रूप में इस पत्रिका को जो डाक से भेजने की सुविधा प्राप्त थी, उसे छीन ली गई। आलोचना तीव्रतर बढ़ती गई, जिसके चलते जेम्स अगस्टस को कारागार में डाल दिया गया और अंततः उसे देश से निर्वासित कर दिया गया। इसी शृंखला में एक दूसरे पत्रकार विलियम हुआनी को भी निर्वासित किया गया। अन्य प्रदेशों से भी जो पत्र निकलते थे उनके लिए सरकार से लाइसेंस प्राप्त करना अनिवार्य किया गया। मद्रास से 'इंफ्रेस' ने बिना लाइसेंस प्राप्त किए 'इंडिया हेराल्ड' निकालना प्रारंभ कर दिया। इसके लिए इनको कानूनी कार्रवाई के तहत गिरफ्तार किया गया और अंत में इन्हें भी निर्वासित कर इंग्लैंड भेज दिया गया।
प्रेस संबंधी प्रथम कानून
१८वीं शताब्दी के अंत तक लगभग २०-२५ अंग्रेज़ी पत्रों का प्रकाशन हो चुका था जिसमें प्रमुख ते बॉम्बे हेराल्ड, बॉम्बे कैरियर, बंगाल हरकारू, कलकत्ता कैरियर, मॉर्निंग पोस्ट, ओऱियंट स्टार, इंडिया गजट तथा एशियाटिक मिरर आदि। पत्र-पत्रिकाओं की उत्तरोत्तर वृद्धि अंग्रेज़ों की दमनात्मक कार्रवाइयों को भी उसी अनुपात में बढ़ाने के लिए बाध्य करती गई। सन १७९९ में लार्ड वेलसली ने प्रेस संबंधी प्रथम कानून बनाया कि पत्र प्रकाशन के पूर्व समाचारों को सेंसर करना अनिवार्य है तथा अन्य शर्तें इस तरह लागू कर दी गईं।
  • (क) पत्र के अंत में मुद्रक का नाम एवं पता स्पष्ट रूप से छापा जाए।
  • (ख) पत्र के मालिक एवं संपादक का नाम पता एवं आवास का पूर्ण विवरण सरकारी सेक्रेटरी को दिया जाए।
  • (ग) सेक्रेटरी के देखे बिना कोई पाठ्य सामग्री छापी नहीं जाए एवं
  • (घ) प्रकाशन रविवार को बंद रखा जाए।
अब तक के सभी पत्र अंग्रेज़ी भाषा में प्रकाशित हो रहे थे तथा सभी पत्रों के संपादक भी अंग्रेज़ थे, फिर भी विरोधात्मक स्थिति में केवल इन्हें निर्वासित कर देना ही पर्याप्त दंड माना जाता था। बाद में सरकार के किसी कार्य पर टीका-टिप्पणी करने पर प्रतिबंध लगा दिया गया जो बेलेसली से लार्ड मिंटो तक चला। भारतीय पत्रकारिता इसे बेहद दुष्प्रभावित हुई। लार्ड हेस्टिंग्स के गवर्नर जनरल बनते ही उपर्युक्त शर्तों में ढील बरती गई, जिसके अंतर्गत प्रकाशन के पूर्व सेंसर की प्रथा समाप्त करते हुए रविवार को प्रकाशन प्रतिबंध समाप्त कर निम्न आदेश जारी किए गए-
  • सरकारी आचरण पर आक्षेप लगानेवाला समाचार नहीं छापा जाए।
  • भारतवासियों के मन में शंका उत्पन्न करनेवाला समाचार नहीं छापा जाए।
  • धार्मिक मामलों में हस्तक्षेप नहीं किया जाए।
  • ब्रिटिश सरकार की प्रतिष्ठा पर आँच आनेवाला समाचार नहीं छापा जाए।
  • व्यक्तिगत दुराचार विषयक कोई चर्चा पत्रों में नहीं की जाए।
भारतीय भाषाओं के समाचार पत्र
इन शर्तों के बावजूद हेर्स्टिग्स का रवैया उदारवादी था, इसलिए इनका पालन सख्ती से नहीं हो पाया फलतः भारतीय भाषाओं में भी पत्र प्रकाशित होने लगे। इनमें प्रमुख पत्र थे- कलकत्ता जर्नल १८१८, बंगाल गजट १८१८, दिग्दर्शन १८१८, फ्रेंड ऑफ इंडिया १८१९, ब्रह्गनिकल मैग्ज़िन १८२२, संवाद कुमुदिनी १८२२, मिरातुल अखबार १८२२ आदि। इनमें कलकत्ता जर्नल एवं संवाद कुमुदिनी सबसे उग्र थे, क्योंकि उस समय भारतीय जीवन के अग्रदूत के रूप में राजा राममोहन राय नेतृत्व कर रहे थे।
हेस्टिंग्स के अवकाशग्रहण के बाद तथा जॉन आडम के नए गवर्नर जनरल के रूप में आते ही, पत्रों की स्वतंत्रता पुनः समाप्त हो गई और ०४.०४.१८२३ को प्रेस संबंधी नए कानूनों द्वारा ये प्रतिबिंब फिर लगा दिए गएः


  • कोई व्यक्ति अथवा व्यक्ति समूह सरकारी स्वीकृति के बिना फोर्ट विलियम के आबादी वाले क्षेत्रों में कोई समाचार पत्र, पत्रिका, विज्ञप्ति अथवा पुस्तक किसी भाषा में प्रकाशित नहीं करेगा, जिस पर सरकारी नीति एवं कार्य पद्धति पर टीका-टिप्पणी हो।


  • लाइसेंस प्राप्ति के लिए जो आवेदन पत्र दिए जाएँ उसके साथ शपथ पत्र भी दिया जाए जिसमें पत्र, पत्रिका, पुस्तक, मुद्रक, प्रकाशक एवं प्रेस मालिक का पूर्ण विवरण सहित भवन विवरण भी दिया जाए, जहाँ से प्रकाशन होगा।


  • बिना लाइसेंस प्राप्त किए पत्र प्रकाशित पाए जाने पर प्रकाशक को चार सौ रुपया जुरमाना अथवा चार महीने कैद की सज़ा दी जाएगी।


  • छापाखाने के लिए भी लाइसेंस अनिवार्य बनाया गया। बिना लाइसेंस के छापाखाने को ज़ब्त कर, मालिक को छह माह का कारावास एवं एक सौ रुपया जुरमाना होगा।


  • जिस पत्र का प्रकाशन रोका गया है। उसके वितरक को भी एक हज़ार रुपया जुरमाना तथा दो माह का कारावास का दंड होगा।
इन प्रतिबंधों का पूरे देश में घोर विरोध किया गया, जिसके फलस्वरूप बंगाल का 'मिरातुल अखबार एवं कलकत्ता जर्नल' की आहूति हो गई। सन १८२८ में विलियम बेंटिक के गवर्नर जनरल का प्रभार लेते ही उपर्युक्त कानून हटाए तो नहीं गए, किंतु कार्यान्वयन में उदारता बरती गई। सन १८३५ में 'सरचार्ल्स मेटकफ' के कार्यभार लेने के बाद भी, वही उदारनीति बरकरार रही और अंततः ०३.०८.१८३५ में इन्हें समाप्त कर दिया गया, किंतु नियंत्रण रखने के लिए कुछ नियम बनाए गए। इस उदार नीति के कारण १८३९ में पत्र-पत्रिकाओं की संख्या इस तरह हो गई- कलकत्ता मे २६ यूरोपियन पत्र जिनमें नौ भारतीय थे एवं नौ दैनिक, बंबई में दस यूरोपियन पत्र थे तथा चार भारतीय। मद्रास में नौ यूरोपियन पत्र थे। इसके अतिरिक्त दिल्ली, लुधियाना एवं आगरा से भी पत्र प्रकाशित होने लगे। सरसैयद अहमद खाँ द्वारा १८३९ में ही 'सैयदुल अखवाराय' दिल्ली का पत्र लोकप्रिय हो गया।
इस प्रकार प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के लिए पूरे भारत वर्ष में पत्र, पत्रकारों एवं पत्रकारिता का चैतन्यपूर्ण परिवेस सृजित हो गया। लॉर्ड केनिंग ने इस सुलगती आग की गहराई को महसूस कर भारतीय पत्रों पर नियंत्रण के लिए १३.०६.१८५७ को प्रेस संबंधी नए कानून बनाकर सरकारी नियंत्रण बरकरार रखा।


  • इंडियन पैनल कोड में संशोधनः लॉर्ड मेकाले द्वारा १८३६ में जो धारा ११० लगाई गई थी उसे १८६० में समाप्त कर दिया गया।


  • रेगुलेशन ऑव प्रिंटिंग प्रेस एंड न्यूजपेपर्स एक्ट १८७६ - इस अधिनियम के अनुसार समाचार पत्रों एवं पुस्तकों के प्रकाशन की स्वतंत्रता समाप्त कर दी गई। इंडियन पैनल कोड में एक नई धारा जोड़कर आपत्तिजनक लेखकों को दंडित करने का प्रावधान कर दिया गया। इन प्रावधानों का विरोध करनेवाले प्रमुख पत्रों में 'स्टेटसमैन', 'पायोनियर', 'अमृत बाज़ार पत्रिका' तथा 'टाइम्स ऑफ इंडिया' प्रमुख थे।


  • गैगिंग प्रेस एक्ट ऑव १८७८- स्वतंत्रता के प्रथम संग्राम १८५७ के बाद पत्रकारों के बीच नवजागरण उत्पन्न हुआ जो मूलतः भारतेंदु युग का प्रथम चरण बना। इनके नेतृत्व में पत्रकार 'स्व' से निकलकर 'देशहित' में अग्रसर हुए। इस युग के प्रमुख पत्रों में 'बिहार बंधु', 'कविवचन सुधा' हरिश्चंद्र मैगज़िन, ब्राह्मण, 'भारतमित्र', 'सारसुधानिधि' हिंदी 'वंशावली', 'हिंदी प्रदीप' एवं उचित वक्ता आदि अग्रणी रहे।


  • वर्नाकुलर प्रेस एक्ट-१८७८- भारतेंदु युग से प्रस्फुटित उत्साह देखकर अंग्रेज़ घबरा उठे एवं इस कानून द्वारा देशी भाषा के पत्रों के संपादकों, प्रकाशकों एवं मुद्रकों के लिए एक शर्त अनिवार्य कर दी गई कि वे कोई ऐसा प्रकाशन नहीं करें जिससे घृणा एवं द्रोह उत्पन्न हो। अंग्रेज़ी पत्रों को मुक्त रखा गया, किंतु १८८० में लॉर्ड रिपन के आने पर वर्नाकुलर एक्ट ०७.०९.१८८१ में रद्द कर दिया गया। उसकी उदार एवं सुधार नीतियों के कारण सर्वत्र उल्लासपूर्ण वातावरण फैलल गया। सन १८८५ में इंडियन नेशनल कांग्रेस की स्थापना हुई।


  • ऑफिशियल सिक्रेटस एक्ट ऑव १८८९- लार्ड रिपन की उदारता अंग्रेज़ों के लिए असह्य हो उठी। अतः अंग्रेज़ी पत्रों ने सरकार को 'कार्यालय गोपनीय प्रविष्टीकरण' को १७.१०.१८८९ से लागू करने के लिए बाध्य कर दिया। उसके द्वारा किसी योजना का प्रकाशन कानूनी अपराध घोषित कर दिया गया। वस्तुतः योजना का अर्थ राष्ट्रीय जागरण से संबंधित था।


  • राजद्रोह अधिनियम १८९८- लार्ड कर्जन के १८९८ में कार्यभार ग्रहण करते ही भारतीय समाचार पत्रों पर नियंत्रण करना पुनः प्रारंभ कर दिया गया, क्योंकि अब तक लखनऊ से 'हिंदुस्तानी अवध बिहार' 'विद्या विनोद', एडवोकेट' मेरठ से 'शाहना-ए-हिंदी', 'अनीस-ए-हिंद' इटावा से 'आलवसीर', बरेली से 'युनियन' तथा इलाहाबाद से 'अभ्युदय' आदि राष्ट्रीय स्तर पर शंखनाद कर रहे थे।


  • प्रेस एक्ट १९१०- बीसवीं शती के प्रारंभ होते ही विभिन्न घटनाओं ने राष्ट्रीय स्तर पर झंझावात उत्पन्न कर दिया जिसमें १९०५ का बंगाल विभाजन भी प्रमुख था। सुधार के बहाने सरकार ने विभिन्न समितियों का गठन किया, किंतु १९१० में यह अधिनियम पारित हो ही गया। इसके बाद अंततः १९२२ में यह कानून रद्द कर दिया गया।


  • प्रेस एंड अनऑथराइज्ड न्यूजपेपर्स १९३०- वाइसराय इरविन ने देशव्यापी आंदोलन को देखकर इस अध्यादेश को मई-जून से लागू कर १९१० की संपूर्ण पाबंदियों को पुनः लागू कर जमानत की राशि ५०० से बढ़ाकर, हैंडबिल एवं पर्चों पर भी प्रतिबंध लगा दिया।
प्रेस बिल १९३१- पूरा देश एवं राजनेता 'राउंड टेबुल कान्फ्रेंस में व्यस्त थे और सरकार ने इसी बीच अध्यादेश को कानून के रूप में इसे पेश कर पारित करा लिया। इसके अंतर्गत समाचार एवं पत्रों के शीर्षक, संपादकीय टिप्पणियों को बदलने का भी अधिकार सुरक्षित रख लिया गया।
इसके बाद १९३५ में भारतीय प्रशासन कांग्रेस के हाथ में आ गया औऱ फलतः समाचार पत्रों को स्वतंत्रता प्राप्त हुई। सन १८३९ में द्वितीय युद्ध प्रारंभ होते ही कांग्रेस सरकार को पदत्याग करना पड़ा और पत्रों की स्वतंत्रता पुनः नष्ट हो गई जो १९४७ तक चली। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद १९५० में नया कानून बना जिसके द्वारा लगभग सभी प्रतिरोध समाप्त कर दिए गए
Sadgati: A Premchand Story 
pavan Verma, Lord Bagri and Shamsudding  Agha
Life, times and legacy of Premchand
The writers of Hindi and Urdu came together in London in a major literary seminar to celebrate to discuss the life times and legacy of Munshi Premchand, one of the giants of Hindi-Urdu literature. Supported by Nehru Centre, the conference was organised by the Indian Muslim Federation, UK. Besides scholarly analysis of Premchand's contribution, excerpts of his short stories were read. Here Mamta Gupta reads from the story, Sadgati.To listen click here  (Hindi)

Jhansi ki Rani: Hindi's most recited poem
Rani Laxmi Bai of Jhansi fightinh against the English troops
Read 'Jhansi ki Rani'
Inspired by Mahatma Gandhi Subhadra Kumari Chauhan  became the first woman Satyagrahi to court arrest in Nagpur. She later wrote the highly inspiring patriotic poem 'Jhansi ki Rani'. During India's freedom struggle against the British Raj it became one of the most recited and sung poems in Hindi literature. Veteran BBC broadcaster Kailash Budhwar recites the poem.To listen click here  (Hindi)

Neeraj: The poet of romantic humanism
Caravan guzar gayaa and other poems
Hindi poet Gopal Das Neeraj is not only one of the most popular Hindi poets of his generation. He wrote some of the most memorable songs for Raj Kapoor and Devanand. Recently, he enthralled Londoners with his poetry of  romantic humanism and later in an exclusive interview he talked about his life and some of his best philosophical  poems never heard in public before.Poetic journey of  Neeraj 

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 (Hindi)

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nsaan Ko Insaan banaya jayee...

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Caravan guzar Gayaa...

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Vishnu Prabhakar honoured by Parampara
At 92 the great Hindi writer still dreams of social change through literature

Vishnu Prabhakar                         LK Advani and KN Memani
Parampara is a Delhi based organisation founded by the Ernest and Young India chairman Kashi Nath Memani. Every year Parampara honours a leading writer for his contribution to the Hindi literature. Earlier this year Parampara honoured the 92-year old Hindi writer Vishnu Prabhakar. He won the Sahitya Akademi Award for his novel, Ardhanarishwara (The Androgynous God or Shiva). His biography of the eminent Bengali novelist, Saratchandra Chatterjee, Awara Masiha (Vagabond Prophet, 1974) is considered not only, to be his magnum opus, but also one of the three best Hindi biographies written so far. In an illuminating acceptance speech Vishnu Prabhakar spoke about the role of writers in bringing the social change.

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