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कितनी गजब की बात है खाना सभी को चाहिए मगर अन्न कोई उपजाना नही चाहता, पानी सभी को चाहिए लेकिन तालाब कोई खोदना नही चाहता। पानी के महत्त्व को समझे। और आवश्यकता अनुसार पानी का इस्तेमाल करे।
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27 September 2010

जब मैंने पहली बार दिनकर जी की यह कविता पढ़ी तो दिनकर जी के अतलस्पर्शी विचार मेरे ह्रदय पर अपने सुनहरे छाप छोड़ गए ! दिनकर जी की इस कविता का गूढ़ रहस्य जानने के बाद किसी भी मनुष्य के सुप्त एवं निराश विचारो में नवीन प्राण आ सकते है !
चाँद और कवि
रात यों कहने लगा मुझसे गगन का चाँद,
आदमी भी क्या अनोखा जीव है!
उलझनें अपनी बनाकर आप ही फँसता,
और फिर बेचैन हो जगता, न सोता है।

जानता है तू कि मैं कितना पुराना हूँ?
मैं चुका हूँ देख मनु को जनमते-मरते
और लाखों बार तुझ-से पागलों को भी
चाँदनी में बैठ स्वप्नों पर सही करते।



आदमी का स्वप्न? है वह बुलबुला जल का
आज उठता और कल फिर फूट जाता है
किन्तु, फिर भी धन्य ठहरा आदमी ही तो?
बुलबुलों से खेलता, कविता बनाता है।

मैं न बोला किन्तु मेरी रागिनी बोली,
देख फिर से चाँद! मुझको जानता है तू?
स्वप्न मेरे बुलबुले हैं? है यही पानी?
आग को भी क्या नहीं पहचानता है तू?

मैं न वह जो स्वप्न पर केवल सही करते,
आग में उसको गला लोहा बनाता हूँ,
और उस पर नींव रखता हूँ नये घर की,
इस तरह दीवार फौलादी उठाता हूँ।

मनु नहीं, मनु-पुत्र है यह सामने, जिसकी
कल्पना की जीभ में भी धार होती है,
वाण ही होते विचारों के नहीं केवल,
स्वप्न के भी हाथ में तलवार होती है।

स्वर्ग के सम्राट को जाकर खबर कर दे-
रोज ही आकाश चढ़ते जा रहे हैं वे,
रोकिये, जैसे बने इन स्वप्नवालों को,
स्वर्ग की ही ओर बढ़ते आ रहे हैं वे।......

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