परीक्षा....मेरी-तुम्हारी
मैं
जिस राह भी गई
हर राह में
खड़े थे तुम
घनी छांव में भी
तुम मिले
धूप की
तपती बारिश में भी
तुम थे वहां
बरखा की
जलती फुहारों के बीच भी
गुनगुना रहे थे तुम
थककर चूर हुई
और सोई
तो ख्वाब-सा
बुन रहे थे तुम
पथरीले रस्ते पर
लहू-लुहान हुई
तब भी साथ थे तुम
जिन राहों पर
जीकर मरती रही
वहां भी
साथ थे तुम
आज हूं
उस रास्ते पर
जो ले जाता है
जिंदगी को
अंतिम सच्चाई तक
आज है परीक्षा
मेरी और तुम्हारी
मैं मिल जाऊंगी
अंतिम सच्चाई से
तुम्हारे साथ
या... तुम्हारे बिना
पूरा करूंगी
अंतिम सफर
2 comments:
बहुत बेहतरीन!
>bahuth acha<
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