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26 January 2011


बढ़ता भ्रष्टाचार - कौन ज़िम्मेदार?

प्रकाशन :सोमवार, 24 जनवरी 2011
पंकज चतुर्वेदी
म शीर्ष पर है ,तो इस पर हमें गर्व होना चाहिये लेकिन यदि क्षेत्र और विषय का पता चले तो हमारा सर शर्म से झुक जाता है ।हमारा लज्जित होना स्वाभाविक है, क्योकि हम भ्रष्टाचार के मामले में शीर्ष पर है।यह आंकलन भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ दुनिया भर में अलख जागने वाली संस्था ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल का है । ताज़ा सर्वे में हमारी भ्रष्टता के चर्चे आम है । भारत के समकक्ष इस सूची में अफ़गानिस्तान, नाइजीरिया और ईराक जैसे देश खड़े है । इन देशों के इतिहास और संस्कृति को देखे तो और शर्म आती है, की इतने वैभवशाली अतीत और नैतिक मूल्यों वाला भारत देश किस स्तर पर आ गया है जहाँ हमारे साथ ऐसे छोटे-छोटे देश है, वह भी भ्रष्टाचार जैसे मामले में ।
हमें यह सम्मान दिलाने में सबसे ज़्यादा अहम भूमिका हमारी पुलिस की है, देश भक्ति और जनसेवा का नारा लगाने वाली भारतीय पुलिस जनसेवा के स्थान पर आत्म सेवा में जुटी है ।
इनके साथ नगरनिगम से लेकर अस्पताल, राशन, तहसील और नजूल, स्कूल-कालेज, मक़न-दुकान हर जगह रिश्वत ।
यह स्थिति पूरे देश में है और इसमें सभी वे राजनीतिक दल और उनकी सरकारें शामिल है, जो वर्तमान में देश की जनता के सामने दूसरे दल को भ्रष्ट और ख़ुद को पाक-साफ़ बता रहें है । ऐसा लगता है की भ्रष्टाचार अब एक राष्ट्रीय-रस्म गया है, जिसकी अदायगी के बिना कोई भी काम पूर्ण नहीं होता । तीव्र गति से बढ़ाते इस भ्रष्टाचार के दानव के क़द में दिन दुनी रात चौगुनी तरक्की हो रही है ।राज नेताओं, नौकरशाहों, व्यापारियों के साथ कर्मचारियों का एक ऐसा गिरोह इस देश में बन गया है जो बिना किसी संवाद और प्रशिक्षण के सिर्फ़ एक ही भाषा समझता है और वो है भ्रष्टाचार। इस भ्रष्टाचार में धर्म, जात-पात, अगडे-पिछड़े जैसी कथित सामजिक बाधायें भी अड़े नहीं आती, यह सब एक है ।
भ्रष्टाचार के इस आंकलन को देश का वर्तमन घटनाक्रम भी सही साबित कर रहा है। कॉमनवेल्थ, टू जी स्पेक्ट्रम, आदर्श सोसयटी, लवासा पूना जैसे मामले इस बात की पुष्टि करतें हैं कि हमने नैतिकता को गिरवी रख अब सिर्फ़ और सिर्फ़ धन को ही प्राथमिकता और उद्देश्य बना लिया है ।
भ्रष्ट आचरण को बढ़ावा और संबल देने का पूर्ण ज़िम्मा सरकारों का ही है और इसमें राज्यों की सरकारे सिर्फ़ केंद्र पर दोष देकर अपना दमन नहीं छुडा सकती ।भ्रष्टाचार का साँप घटिया क़िस्म के नेताओं और आधिकारियों के आस्तीन में पल रहा है लेकिन वह साँप इनको डसने के बजाय देश को ही खा रहा है । इस कथित लोकतंत्र में किसी को भी यह की फ़ुर्सत नहीं है कि क्यों और कैसे देश में नेताओं और अफ़सरों की संपत्ति बेहिसाब बढ़ रही है । कैसे देश में करोड़ों लोगो को छोड़ लक्ष्मी जी इन्ही चंद लोगो पर अपनी कृपा सतत बरसा रही है । यह लोकतंत्र की विडंबना ही है की मधु कौडा जैसा व्यक्ति भी देश के एक हिस्से के लोगों का भाग्य-विधाता बन जाता है।
वर्तमान परिदृश्य में भारत सहित दुनिया भर में सभी जगह भ्रष्टाचार ऐसा मुद्दा बना हुआ है जिस पर सर्वाधिक चर्चा हो रही है । ग़रीबी, भूख, बेरोज़गारी जिसे बुनियादी मुद्दे पीछे है ।अब तो  यह एक गंभीर वैश्विक बीमारी बन चुकी है जिसका इलाज किसी भी विज्ञानं में नहीं है ।
अपने देश में यह महामरी विगत दो या तीन दशकों में ज़्यादा फ़ैली है। अब हमारा उद्देश्य सिर्फ़ यह है की कैसे भी हो बस हमारा कम बन जाये । नैतिकता, ईमानदारी जैसे बातें अब सिर्फ़ क़िस्सों और किताबों के लिए ही शेष है । नौकरी पाने के लिए रिश्वत फिर नौकरी बचाने और बढ़िया पोस्टिंग के लिए रिश्वत । आज जितने नेता भ्रष्टाचार को लेकर देश भर में चीख रहें है यदि वो अपने गिरेबान में झाँके तो, चुनाव के टिकट के लिए पैसा, चुनाव लड़ने के लिए पैसा और फिर मलाईदार कुर्सी के पैसा और फिर इन सब खर्चों को पूरा करने के लिए भ्रष्टाचार। जनता बेचारी लाचार ।
भौतिक सुख सुविधा की लालसा और प्रतिद्वंदिता के इस युग में ईमानदार और चरित्रवान व्यक्ति को आज मूर्ख समझा जाता है। अब इमानदार वह है जी रिश्वत लेकर आपका कम कर दे और बेईमान वो जो रिश्वत लेकर भी आपका कम ना करे।
आधिकारियों और राज-नेताओं के साथ भ्रष्टाचार को उजागर करने वाला मीडिया भी इस गंदगी में मैला होता जा रहा है । टू जी स्पेक्ट्रम मामले देश के कुछ बड़े और नामी पत्रकारों की भूमिका भी प्रथम दृष्टया सन्दिग्ध लगी है । चुनावों के दौरान पैसे देकर ख़बर के पैकेज अब आम है, जिसे वर्तमान व्यवस्था का अंग मान लिया गया है। पत्रकरिता मिशन से प्रोफ़ेशन में कब बदल गयी पता ही नहीं चला लेकिन अब पत्रकरिता भी व्यवसाय हो गया है जिसे सब स्वीकार कर चुके है। इस लिए अब इस लोकतंत्र में ग़रीब आदमी तो नेता नहीं बन सकता । हाँ नेताओं और अफ़सरों का शिकार जरुर यही ग़रीब आदमी है जिसके कोटे का पैसा, आनाज और वह सब कुछ जो भी सरकार से मिलता है उस ये सब मिलकर खा जाते है। फिर उसी ग़रीब और आम आदमी को बहलाने के लिए भरष्टाचार से लड़ने और मिटाने के झूटे और खोखले वादे करते रहते हैं। आज देश में लोग भारत की बैंको के नाम नहीं जानते पर स्विस बैंक का नाम और काम सब जानते है ।
अब तो देश में नेताओं-अफ़सरों के साथ ही न्यायपालिका से जुड़े लोगो की संपत्तियाँ सार्वजानिक होने लगी है लेकिन इतने से ही काम नहीं बनेगा । जिसकी संपत्ति ज़रूरत से ज़्यादा बढ़ी हो उस पर कठोर कार्यवाही से कुछ सबक मिलेगा और तभी भ्रष्टाचार का यह दानव शांत होगा।
देश की क़ानून कि कमजोरियाँ भी इन भ्रष्टाचारियों का काम आसान किये हुए है । आयकर के छपे के बाद आप कर और जुर्माना देकर छुट सकते है, ना कोई बड़ी सजा न दंड । यही कमजोरी भ्रष्टों की ढाल बनी हुई है । इस ढाल को हटकर ही भ्रष्टाचार के भाल पर चोट की जा सकती है । और जब तक चोट नहीं होगी तो कुछ भी बदलाव संभव नहीं ।
  पंकज चतुर्वेदी
अध्यक्ष
एनडी..सेंटर फ़ॉर सोशल डेवलपमेंट एंड रिसर्च
106, विनीत कुंज, अनुपम अस्पताल के पीछे
कोलार रोड, भोपाल, म.प्र.-42
मो.- 9425004636
pankaj23chaturvedi@gmail.com

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