പുതിയ 8,9,10 ഐസിടി പാഠപുസ്തകങ്ങള്‍ പരിചയപ്പെടുത്തുന്ന ഐടി. ജാലകം - പരിപാടി (വിക്‌ടേഴ്സ് സംപ്രേഷണം ചെയ്തത്) യൂട്യൂബിലെത്തിയിട്ടുണ്ട്. .. ലിങ്ക്!
कितनी गजब की बात है खाना सभी को चाहिए मगर अन्न कोई उपजाना नही चाहता, पानी सभी को चाहिए लेकिन तालाब कोई खोदना नही चाहता। पानी के महत्त्व को समझे। और आवश्यकता अनुसार पानी का इस्तेमाल करे।
Powered by Blogger.

24 April 2011

रामकुमार आत्रेय को लघुकथा गौरव सम्मान



कुरुक्षेत्र के वरिष्ठ लघुकथाकार रामकुमार आत्रेय को लघुकथा के क्षेत्र में उनके योगदान के लिए १६-१७ फरवरी को देश की महत्वपूर्ण साहित्यिक संस्था सृजन-, सम्मान, रायपुर द्वारा लघुकथा गौरव सम्मान से अलंकृत किया गया । उन्हें सम्मानित करते हुए फ़िराक गोरखपुरी के नाती, वरिष्ठ कवि, चित्रकार व छत्तीसगढ़ के पुलिस महानिदेशक विश्वरंजन, धर्मयुग, नवभारत टाइम्स के पूर्व संपादक व वर्तमान में नवनीत के संपादक, विश्वनाथ सचदेव, वरिष्ठ आलोचक व प्रवासी साहित्य विशेषज्ञ कमलकिशोर गोयनका, तथा उत्तरप्रदेश के पूर्व विधानसभा अध्यक्ष व वरिष्ठ साहित्यकार केशरीनाथ त्रिपाठी ।


मुफ्त में ठगी 
रामकुमार आत्रेय 
<"2">बूढ़े किसान ने खरीदा
एक बोरा बढ़िया बीज
दो बोरे रासायनिक खाद
घर जाकर देखा तो पाया
तीनों बोरों में
पांच-पांच किलो ठगी भी थी

अपने थके पांवों को
घसीटते हुए वह भूखा-प्यासा
पसीने से लथपथ
सात कोस दूर जा पहुंचा शहर
वह पूछने के लिए
कि उसे
विश्वास के स्थान पर 
ठगी क्यों दी गई

दुकानदार ने हंसते हुए
उसे समझाया
कि ठगी तो हमने दी है
उपहार के रुप में तुम्हें
कोई पैसा नहीं लिया है
तुमसे उसका

तुम्हें पता नहीं है शायद
चाय के पैकेट के साथ
एक कप मुफ्त मिलता है आज कल
साबुन के पैकट के साथ 
एक चमच
कापी के साथ एक कलम
टूथपेस्ट के साथ एक ब्रश
ठीक वैसे ही
ठगी मिली है मुफ्त में तुम्हें
तीनों बोरो के साथ 
कहीं न कहीं काम आएगी

किसान संतुष्ट हो
लौट गया घर
यह सोचता हुआ कि
मुफ्त में कुछ भी मिले
फायदा ही होता है
चाहे वह
ठगी ही क्यों न हो!
चीते की तरह दर्द

दर्द आता है दबे पांव
और दबोच लेता है
चीते की तरह चुपचाप
आदमी को
आदमी तब चाहकर भी
छूट नहीं पाता है
उसकी पाशविक गिरफ्त से

चीते और दर्द में
यों होता है बहुत बड़ा अन्तर
जैसे कि निश्चित होती है
चीते की अपनी एक शक्ल
जबकि दर्द की
अपनी कोई शक्ल ही नहीं होती

दूसरे
चीता चाह कर भी
दर्द को नहीं दबोच सकता
किसी पशु या इन्सान की तरह
लेकिन दर्द अवश्य बना सकता है
अपना शिकार चीते को भी

तीसरे
चीता जंगल में रहता है
कभी भूल-भटक कर ही आता है
इन्सानों की बस्ती में
जबकि इन्सान
जब भी चीता बनता है
 तो बस्ती को ही बदल देता है
जंगल में

इन्सान को इन्सान बनाए रखने में
दर्द का हाथ कितना होता है
मालूम नहीं
परन्तु इतना अवश्य सुना है
कि दर्द जब हद से गुजरता है
तो चीते को भी इन्सान बना देता है। 

गर्दन पर सवार बेताल

हम लोग शिकार हैं
एक गंभीर हादसे के
जिसकी ओर
न किसी सरकार का ध्यान है
और न ही
किसी समाज-सेवी संस्था का

हादसे ने हमें
बना दिया है निपट कंगाल
सर्वहारा
काश! हमें भी मिल पाती
कहीं से कोई राहत
किस से कहें
कोई भी सुनने को नहीं है तैयार

राहत के रुप में
हमें नहीं चाहिए कोई नकद राशि
दस-बीस किलो चावल
साग-पूरी के बंद पैकेट
अथवा कंबल-तंबू और दवा

यदि कोई हम तक
पहुंचाना चाहता हो राहत
तो उससे अनुरोध है हमारा
कि हमें दिलवा दे फिर से
हमसे जबरदस्ती
छीनी गई हमारी संवेदनाएं
हमारे रिश्तों की ऊष्मा
हमारा अपनापन
हमारी इन्सानियत

जिसने हमसे ये सब छीना है
वह है एक दैत्य
जिसका नाम है बाजार
जो बेताल की तरह
हो चुका है हमारी गर्दन पर सवार। 
- 864-ए12, आजाद नगर,

कुरुक्षेत्र-136119

No comments:

Pages

Submitting Income Tax Returns: Last Date Extended to Aug 31:Notification : ITR Forms :e-file Help:E-filing Link.

© hindiblogg-a community for hindi teachers
  

TopBottom