बाराहाट (बांका), निप्र : दक्षिण भारत के केरल राज्य के मावेलीकश गांव में जन्मे सुप्रसिद्ध साहित्यकार आनंद शंकर माधवन को मंदार से सदा ही लगाव था। माधवन 'सत्यम शिवम सुन्दरम' के पदचिन्हों पर चलने वाले एक अनथक यायावर थे। जिनकी तुलना विनोबा भावे, बाबा आम्टे जैसी विभुतियों से भी होती रही है। इस राष्ट्रीय विभुति का जन्म भगवान परशुराम की जन्मस्थली केरल राज्य में हुई और परशुराम की साधनास्थली मंदार यानि महेन्द्रांचल या मंदूराचल में माधवन ने अपनी साधना पूरी की। उन्होंने बचपन में ही अपना घर परिवार छोड़ दिया और परिव्राजक की तरह पूरे भारत का भ्रमण किया। युवावस्था में वे गांधी, जाकिर हुसैन और कृष्णमूिर्त्त के संपर्क में आए और जामिया मिलिया से उच्च प्राप्त की। डॉ. जाकिर हुसैन इनके गुरुर्थ महाशिवरात्रि के दिन 1914 ई. में जन्म लेकर माधवन ने पूरा जीवन संघर्ष में ही बिताया। इस महान आत्मा का विरोधाभाव भी महाशिवरात्रि के दूसरे दिन ही हुआ। 14 फरवरी 2007 को नई दिल्ली के अपोलो में इनका महाप्रयाण हुआ। विद्यापीठ की स्थापना 1945-46 में हुई। स्वतंत्र शिक्षा एवं रचनात्मक प्रयोगों के रूप में यह उनका सफल प्रयास था। विद्यापीठ ने इस क्षेत्र के गरीब एवं मध्यमवर्गीय किसानों के बच्चों ने शिक्षा प्राप्त की। माधवन ने विद्यापीठ के साथ साथ साहित्य संरचना का भी भंडार भरने का काम किया। उन्होंने मंदार स्पीक्स और प्राच्य भारती जैसी दो पत्रिकाओं का भी अनवरत प्रकाशन किया। उन्होंने काल उपन्यास कहानी पटकथा, जीवनी संस्मरण, आत्मकथा, निबंध और पत्र सहित को अपनी कृत्यों से समृद्ध किया। आमंत्रित मेहमान प्रसव वेदना (दो खंड) में दो वृहत उपन्यास है। जिन्हें बिहार राष्ट्रभाषा परिषद से पुरस्कार किया गया। एणाक्षी सफल पटकथा है। आरती और उषा निबंध संकलन है। माधवन ने सुकरात, प्लेटो एवं खलिल जैसे महान दार्शनिकों पर भी पुस्तके लिखी, जो हिन्दी में प्रकाशित हुई। माधवन जी ने काव्य पर मोटी-मोटी पुस्तकों का विमोचन किया।
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