
दवाई की पूरी दुकान एक आदमी का रोग दूर नहीं कर सकती है। वैद्य हो, मरीज को क्या बीमारी है यह उसे पता हो और कौन सी दवा कितना काम करेगी इस प्रकार समझदारी से विचारकर यदि वह उसी दुकान से दवाई उठाकर ओर खुराक दे दे तो मरीज ठीक हो जायेगा। ऐसे ही शास्त्र, पद्धतियाँ, रीति-रिवाज सब दवाइयों की दुकानें हैं और सदगुरू हैं वैद्य।
सारा समुद्र खारा है। उस जल को मेघ उठाता है, फिर बरसात करता है। खारापन हटा देता है और साररूप अमृत जैसा पानी दे देता है। फिर वह पानी अमृत जैसा ही क्यों न हो, जैसा पात्र है वैसा उसका परिणाम आता है। सड़कों पर बरसता है लीद बह जाती है, डीजल के दाग थोड़े धुल जाते हैं। खेत में पड़ता है तो ज्वार-बाजरे की फसल हो जाती है, गन्ने की फसल में पड़ता है तो गन्ना बन जाता है, स्वाति नक्षत्र में सीप में पड़ता है तो मोती बन जाता है, गटर में पड़ता है तो कीचड़ बन जाता है.... जैसा पात्र वैसा उसका रूप हो जाता है।
ऐसे ही सदगुरूओं की वाणी जलवृष्टि – न्यायेन होती है। अथाह शास्त्रों के सागर से वे ज्ञानामृत उठाते हैं फिर बरसाते हैं। उसे ग्रहण करने वालों की जैसी पात्रता होती है, वैसा वैसा परिणाम आता है।
No comments:
Post a Comment