इस्लाम में दो ईदें है, एक ईदुल फितर जो शव्वाल की पहली तारीख को रमजान माह के रोजों के बाद होती है, दूसरी ईदुल अजहा जिसे ईदे कुरबां भी कहा जाता है। ये दोनों दिन इस्लाम में खुशी मनाने के दिन है। मुफ्ती इस्लाहुद्दीन खिज़र ने बताया कि जब प्यारे नबी स. मक्के से हिजरत फरमाकर मदीने तशरीफ ले गए तो मदीने के मुसलमानों को दो दिन खुशी मनाते देखा, आपने दरयाफत फरमाया यानी पूछा तो लोगों ने बताया कि हम इस्लाम से पहले से इन दोनों दिनों में खुशी मनाते चले आए हैं, आप स. ने फरमाया कि खुदा ने इन दोनों दिनों के बजाए तुम लोगों के लिए दो दिन इससे बहतर मुकरर किए हैं।
एक ईदुल फितर, दूसरे ईदुल अजहा, ईद के दिन गुस्ल करना यानी नहाना, मिस्वाक करना ((लकड़ी से दांत मांजना)), अ'छा और उमदा लिबास पहनना, खुशबू लगाना, ईदगाह में नमाज पढना, ईदगाह तक पैदल जाना, अगर कोई माजूरी हो, या ईदगाह बहुत दूर होतो सवारी पर जाने में कोई हरज नहीं है। एक रास्ते से जाना, दूसरे रास्ते से आना, ईदुल फितर के दिन नमाज से पहले कोई मीठी चीज खाना सुन्नत है। सदके फितर अदा करके नमाज के लिए जाना। ईदुल फितर में ईदगाह जाते हुए आहिस्ता आहिस्ता तकबीर पढना, खुशी का इजहार करना चाहिए।
ईद भाईचारे का पर्व । रमजान माह के बाद आने वाला ईदुल फितर का त्यौहार खुशी व भाईचारे का संदेश देता है। इस दिन गिले शिकवें भुलाकर गले मिलकर मुबारक देते हैं।
ईद अल्लाह का तोहफा । रमजान माह के बाद आने वाली ईद रोजदारों के लिए अल्लाह का तोहफा है। रोजदार ईदगाह में नमाज पढ़कर दुआएं मांगते हैं तथा अल्लाह ने रमजान जैसा महिना अता फरमाया उसका शुक्राना अदा कर खुशियां मनाते हैं।
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