'निराला' की "तोडती पतथर" पर एक सामानय विचार
सूयरकात तिपाठी 'निराला' की विभिन आयामो पर चिचरत किवता है "तोडती पतथर"।इस किवता मे इलाहाबाद के पथ पर पतथर तोडती रही एक युवित के माधयम से किव ने सामािजक असंतुलन की ओर पाठको का धयान आकिषरत करने का पयास किया है।
तुलसीदास के एक दोहे पर थोडा विचार
मिथया माहुर सजजनिह, खलिहं गरल सम साच।
मिथया माहुर सजजनिह, खलिहं गरल सम साच।
तुलसी छुवत पराई जयो, पारद पावक आँच।।
यह तुलसीदास का एक नीितपरक दोहा है।धािमरक होने के नाते वे लोगो मे मान-मयादा की भावना जगाने का भरसक पयास करते रहे। इस भूिमका मे पसतुत दोहे को समझना चािहए।नीितपरक दोहे का अथर नैितकता को सामने रखकर ढूँढना उिचत रहेगा।तुलसीदास जैसे लोग समाज के लिए लिखते थे।
लेख का पूर्ण रूप यहाँ से Hndi Blog
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