रायपुर. प्रदेश में मलेरिया के कहर से अब तक 50 से अधिक लोगों की जान जा चुकी है। इसके बाद भी स्वास्थ्य विभाग की तैयारी नाकाफी है। उन पहुंचविहीन क्षेत्रों में मौतें ज्यादा हुई हैं, जहां स्वास्थ्य सेवाएं बेहतर नहीं हैं। बीजापुर और राजनांदगांव जिलों में अब तक सर्वाधिक 30 लोगों की मौतें हुई हैं। राजनांदगांव जिले के गोटाटोला क्षेत्र के 12 बच्चे शामिल हैं। बस्तर, दंतेवाड़ा, बीजापुर, नारायणपुर, राजनांदगांव, कोरबा, जशपुर, कांकेर व कोरिया जिले में मलेरिया कहर बरपा रहा है। इन जिलों को अलर्ट कर दिया गया है। नेशनल वेक्टर बोर्न डिसीज कंट्रोल प्रोग्राम (एनवीबीडीसीपी) यूनिट भी मलेरिया की रोकथाम के लिए जुट गई है। राजधानी में राज्य स्तरीय नियंत्रण कक्ष बनाया गया है।
एनवीबीडीसीपी के अनुसार प्रदेश में 20 अक्टूबर के बाद मलेरिया के मरीजों की संख्या एकदम बढ़ी। इसके पहले मलेरिया के गिने-चुने मामले ही आ रहे थे। जनवरी से सितंबर तक प्लाज्मोडियम फैल्सीफेरम (पीएफ) मलेरिया से जांजगीर में दो, कोरबा में एक, रायगढ़ में दो व कोरिया जिले में पांच लोगों की मौत हुई है। फैल्सीफेरम मलेरिया सबसे ज्यादा खतरनाक मलेरिया मादा एनाफिलीज मच्छर के काटने से होता है। इसके चार प्रकार होते हैं। इनमें फैल्सीफेरम मलेरिया सबसे ज्यादा खतरनाक होता है। मस्तिष्क ज्वर भी खतरनाक है। इन दिनों प्रदेश में फैल्सीफेरम मलेरिया का प्रकोप है। आंबेडकर अस्पताल के शिशु रोग विभागाध्यक्ष डॉ एनएल फुलझेले ने बताया कि मलेरिया बच्चे व गर्भवती महिलाओं को सबसे ज्यादा अपनी गिरफत में लेती है। इससे सर्वाधिक मौत इन्हीं लोगों की होती है। सामान्यत: बारिश के बाद मलेरिया का प्रकोप बढ़ जाता है। ठंड में भी लार्वा जिंदा रहते हैं। गर्मी के दिनों में लार्वा मर जाते हैं, इसलिए मलेरिया का खतरा कम हो जाता है। 24 घंटे नियंत्रण कक्ष मंगलवार को स्वास्थ्य संचालनालय में राज्य स्तरीय नियंत्रण कक्ष बनाया गया। यह 24 घंटे खुला रहेगा। स्वास्थ्य सचिव विकासशील ने वीडियो कांफ्रेसिंग के माध्यम से सभी कलेक्टरों, सीएमओ व मलेरिया अधिकारियों को मलेरिया से निपटने के आदेश दिए। उन्होंने सभी जिलों में 30 हजार आरडी किट भेजने को कहा
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