नई दिल्ली. एक तो पहले से ही आसमान छूती महंगाई ने रसोई का बजट बिगाड़ रखा है और उस पर प्याज की कीमतें भी जेब पर बहुत भारी पड़ रही हैं। पिछले दो महीने में इसका खुदरा भाव चार गुना हो गया है। यह फिलहाल 40-45 रुपये प्रति किलो बिक रहा है, जबकि दो महीने पहले यह 12 रुपये पर था। ऐसे ही प्याज की बेतहाशा बढ़ती कीमतों ने वर्ष 2001 में दिल्ली की भाजपा सरकार की बलि ले ली थी।
प्याज के आसमान छूते दामों से परेशान केंद्र सरकार ने इन पर अंकुश लगाने के लिए आनन-फानन में कई कदम उठाए हैं। खुदरा बाजार में कीमतें नहीं गिरते देख सरकार इसके निर्यात पर भी पाबंदी लगाने पर विचार कर रही है। वाणिज्य व उद्योग मंत्री आनंद शर्मा ने कहा भी है कि हालात का आकलन किया जा रहा है।
घरेलू बाजार में सटोरियों और स्टॉकिस्टों की सक्रियता से प्याज के मूल्य बढ़े हैं। सरकार इन पर सख्ती बरतने के सभी उपाय करेगी। सरकार का विश्वास है कि प्याज का मूल्य नवंबर के आखिर तक घट जाएगा।
कर्नाटक, आंध्र प्रदेश और महाराष्ट्र में बेमौसमी बारिश के कारण प्याज की फसल को हुए नुकसान के बाद कीमतों में तेज उछाल आया है। हालांकि जानकारों का कहना है कि कारोबारियों ने बारिश से प्याज की फसल को हुए नुकसान की खबरों का फायदा उठाते हुए कीमतों में जबरदस्त बढ़ोतरी कर दी है। जिस अनुपात में कीमतों में वृद्धि हुई है, प्याज की फसल को उतना नुकसान नहीं हुआ है। उल्टे चालू साल में प्याज की पैदावार पिछले वर्ष के मुकाबले अधिक हुई है।
प्याज के बढ़ते मूल्य थामने के लिए सरकार ने 15 नवंबर को कई कदमों का एलान किया। इनके तहत प्याज का निर्यात रोकने के लिए इसके न्यूनतम निर्यात मूल्य में 150 डॉलर प्रति टन का तगड़ा इजाफा किया गया है। इसके अलावा सरकारी एजेंसियां किसानों से सीधे प्याज खरीदेंगी। नैफेड व एनसीसीएफ जैसी एजेंसियां अपनी दुकानों से 25 रुपये किलो की दर से यह प्याज बेचेंगी। नैफेड के आंकड़ों के मुताबिक अक्टूबर में देश से 1,37,128 टन प्याज का निर्यात किया गया। यह पिछले साल के मुकाबले 23 फीसदी कम है।
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