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25 January 2011



बांधों ने नर्मदा नदी का स्वरूप बिगाड़ा : दवे

अमरकंटक से भरूच तक बहने वाली 1312 किलोमीटर लंबी नर्मदा नदी पर चार बड़े बांध सरदार सरोवर, महेश्वर, ओंकारेश्वर और बरगी बने है। इन बांधों के कारण लगभग 446 किलोमीटर हिस्से में पानी ठहरा हुआ है। नर्मदा नदी की इस स्थिति का खुलासा नर्मदा समग्र के सचिव अनिल दवे ने पत्रकारों के बीच करते हुए कहा कि आज जरूरत इस बात की है कि नर्मदा को बचाने के लिए जन चेतना जागृत हो।
उन्होंने बताया कि नर्मदा नदी पर आने वाले समय में 3300 बांध प्रस्तावित है। यह स्थिति नर्मदा नदी के लिए घातक है। वे इन बांधों के बनने का सीधे तौर पर विरोध करने से बचते है और कहते है कि आज जरूरी हो गया है कि बांधों के लाभ और हानि का आकलन किया जाए। साथ ही इस दिशा में भी पहल हो कि बहते हुए पानी के बांध बनाए जाए।
पिछले कुछ वषरे से नर्मदा नदी के संरक्षण के लिए अभियान चला रहे दवे स्वीकारते है कि बड़े पैमाने पर नदी के किनारे की हरियाली खत्म होने से कटाव भी बढ़ा है। इतना ही नहीं इस नदी की 70 फीसदी रेत की चोरी भी होती है। वे इस स्थिति से निपटने के लिए नदी के दोनों किनारों पर हरियाली चुनरी की योजना बना रहे है। इसके तहत पर्यावरण प्रेमियों को भूखंड दिए जाएंगे जो उस क्षेत्र में वृक्षारोपण करेंगे। नर्मदा समग्र ने अपने अभियान के दौरान पाया है कि नदी में प्रदूषण भी बढ़ रहा है और कई क्षेत्रों के नाले तक नदी में मिल रहे हैं।
नर्मदा समग्र ने अगले वर्ष फरवरी में अंतर्राष्ट्रीय नदी महोत्सव 2010 आयोजित करने का निर्णय लिया है। नर्मदा व तवा नदी के संगम स्थल बान्द्राभान नर्मदापुरम में होने वाले इस महोत्सव में दुनिया भर के चिन्तक और विशेषज्ञ शामिल होंगे।


भोपाल प्रदेश की जीवनदायिनी नर्मदा नदी खतरे में है

नदियों तक पानी पहुंचाने वाले 50 फीसदी तटीय क्षेत्र खत्म, एक अध्यन में खुलासा


भोपाल प्रदेश की जीवनदायिनी नर्मदा नदी खतरे में है। इसकी वजह है नर्मदा के तटीय क्षेत्रों का तेजी से खत्म होना। इन तटीय क्षेत्रों से ही पानी नर्मदा नदी में पहुंचता है, लेकिन एक ताजा अध्ययन के अनुसार प्रदेश में नर्मदा के 50 फीसदी तटीय क्षेत्र नष्ट हो चुके हैं। ऐसा इन तटीय क्षेत्रों पर अतिक्रमण की वजह से हुआ है।


तटीय क्षेत्र नदियों के लिए ‘दिल’ का काम करते हैं। जिस तरह दिल पूरे शरीर में ऑक्सीजन की पंपिंग करते हैं, उसी तरह ये तटीय क्षेत्र बारिश के पानी को नदियों तक पहुंचाते हैं। इनके नष्ट होने पर किसी भी नदी या तालाब की भराव क्षमता सीधे तौर पर प्रभावित होती है।


हाल ही में बरकतउल्ला विवि के सरोवर विज्ञान विभाग द्वारा नर्मदा नदी के तटीय क्षेत्रों पर हुए एक अध्ययन में यह बात सामने आई है कि इसके आधे से ज्यादा तटीय क्षेत्र अतिक्रमण की भेंट चढ़ चुके हैं। कमोबेश ऐसी ही स्थिति प्रदेश की बाकी नदियों और तालाबों की भी है।




क्या है वजह?


नदी के तटीय क्षेत्रों में झाड़ियां और छोटे पेड़ होते हैं जो बहकर आने वाले बरसात के जल को अपने में समेट लेते हैं। ये क्षेत्र नदियों और तालाबों के आकार के हिसाब से तट से लगे 15 से 100 मीटर तक के क्षेत्रफल में फैले हो सकते हैं। यहां से पानी रिसकर नदियों और जलाशयों में पहुंचता है। अध्ययनकर्ताओं ने पाया कि ग्रामीण क्षेत्रों में झाड़ियां और छोटे पेड़ों को साफ करके वहां खेती की जा रही है। इस वजह से तटीय क्षेत्र खत्म हो गए। शहरी क्षेत्रों में निर्माण कार्यों की वजह से तटीय क्षेत्र बड़ी तेजी से समाप्त होते जा रहे हैं। नर्मदा नदी किस तरह से सिकुड़ती जा रही है, इसकी पुष्टी प्रदेश के जल संसाधन विभाग के डाटा सेंटर के आंकड़ों से भी होती है।




बरगी से होशंगाबाद का क्षेत्र सबसे अधिक प्रभावित
इस बारे में भाजपा नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री प्रहलाद पटेल बताते हैं कि नर्मदा के तटीय क्षेत्रों का क्षरण बिल्कुल सही बात है। उन्होंने अपनी नर्मदा यात्रा के दौरान कई तटीय क्षेत्रों में खेती और अतिक्रमण होते देखा है। नर्मदा को बचाने और उसके सफाई अभियान में सक्रिय भूमिका निभाने वाले पटेल कहते हैं कि पहले नदियों के आसपास रंजड़ी (छोटा जंगल) होता था। नर्मदा के तटीय क्षेत्र ही 500 से 1000 मीटर तक हुआ करते थे। लेकिन अब यह सिमटकर नदी के बिल्कुल किनारे तक आ गए हैं। रेत के उत्खनन से सबसे ज्यादा प्रभावित बरगी से होशंगाबाद का क्षेत्र है जहां नदी का सबसे अधिक कटाव हुआ है। इस वजह से नर्मदा की जल भराव क्षमता भी प्रभावित हुई है। ऐसे सिकुड़ रही नर्मदा


नर्मदा नदी किस तरह से सिकुड़ती जा रही है, इसकी पुष्टि प्रदेश के जल संसाधन विभाग के डाटा सेंटर के आंकड़ों से भी होती है। इसके अनुसार वर्ष २क्क्६ में नर्मदा नदी में पानी का अधिकतम औसत जल स्तर समुद्र तल से 323 मीटर था, जो 2009 में घटकर 308 मीटर रह गया। नदी के उद्गम स्थलों पर स्वस्थ तटीय क्षेत्रों की सबसे अधिक जरूरत होती है। अगर अब भी हम स्थिति को संभालना चाहें तो तटीय क्षेत्रों को बचाकर नई शुरुआत कर सकते हैं।


डॉ.विपिन व्यास, अध्ययनकर्ता, बरकतउल्ला विवि, भोपाल

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