പുതിയ 8,9,10 ഐസിടി പാഠപുസ്തകങ്ങള്‍ പരിചയപ്പെടുത്തുന്ന ഐടി. ജാലകം - പരിപാടി (വിക്‌ടേഴ്സ് സംപ്രേഷണം ചെയ്തത്) യൂട്യൂബിലെത്തിയിട്ടുണ്ട്. .. ലിങ്ക്!
कितनी गजब की बात है खाना सभी को चाहिए मगर अन्न कोई उपजाना नही चाहता, पानी सभी को चाहिए लेकिन तालाब कोई खोदना नही चाहता। पानी के महत्त्व को समझे। और आवश्यकता अनुसार पानी का इस्तेमाल करे।
Powered by Blogger.

16 May 2011

कविताओं में बिंब और उनसे जुड़ी संवेदना


IMG_0130

मनोज कुमार

हलांकि प्रतीकों की तरह ही बिंबों का प्रयोग भी हिंदी काव्‍य में शुरू से ही होता रहा है, लेकिन प्रतीक और बिंब में इसके प्रयोग को लेकर अंतर है।


प्रतीक के द्वारा हम काव्य में बाह्य जगत से सामग्री उठाकर उसे नया अर्थ देते हैं।
बिंब के सहारे बाहरी संसार की छवियों को लेकर विशेष संदर्भ में उन्‍हें इस प्रकार प्रयुक्‍त करते हैं कि हमारा कथ्‍य ज्‍यादा स्‍पष्‍ट और अधिक प्रभावी हो जाता है।

बादल अक्टूबर के

हल्के रंगीन ऊदे

मद्धम मद्धम रुकते

रुकते-से आ जाते

इ त ने पास अपने। --- “संध्या” – शमशेर


लग रहा है कि कवि किसी की याद में खोया है और प्रकृति को अपने ख्याल के रंग में निहार रहा है। शब्दों को तोड़कर गति को बिलंबित कर देने से ... धीमे-धीमे सरक रहा हो .... का भाव पैदा हो रहा है।

प्रतीक के द्वारा वस्‍तु जगत के पदार्थों तथा स्थितियों को प्रतीक बनाकर उनके माध्‍यम से संवेदनाओं और अनुभूतियों को व्‍यक्‍त किया जाता है। दूसरे शब्दों में हम कह सकते हैं कि प्रतीक द्वारा मूर्त जगत में अर्मूत भावनाओं का निरूपण किया जाता है, इसे देखा नहीं जाता, मात्र महसूस किया जा सकता है। अपने अंतर में ही समझा या विश्‍लेषित किया जा सकता है।

जैसे रघुवीर सहाए की पंक्तियां लें हिलती हुई मुंडेरें हैं चटख़े हुए है पुल प्रतीक हैं दुनिया में आए विचलनों के, दूरियों के।

प्रतीकों के विपरीत बिंब इंद्रिय संबंध होते हैं अर्थात उनकी अनुभूति किसी न किसी इंद्रिय से जुड़ी रहती है।

जैसे दृश्‍य बिंब, श्रव्‍य बिंब, घ्राण बिंब, स्‍पर्श बिंब।

कवि या रचनाकार हमारे परिवेश से कुछ दृश्‍य, कुछ ध्‍वनियों, कुछ स्थितियां उठाते हैं। उसमें अपनी कल्‍पना, संवेदना, विचार और भावना को पिरोते हैं, फिर उन्‍हें तराशकर बिंबो का रूप देते हैं
दिवसावसान का समय
मेघमय आसमान से उतर रही है
वह संध्या सुंदरी परी-सी
धीरे-धीरे-धीरे,
तिमिरांचल में चंचलता का नहीं कहीं आभास --निराला (संध्या-सुंदरी)

यहां पर ध्‍यान देने वाली बात यह है कि अपने कथ्य को संक्षेप में और सघन रूप से प्रस्‍तुत करना चाहिए। इससे अपनी बात जो हम कहना चाहते हैं उसका प्रभाव बढ़ता है। बिंब का सफल प्रयोग तभी माना जाएगा जब किसी स्थिति को हम सजीव रूप से पाठक के सामने रख देते हैं।
है बिखेर देती वसुंधरा
मोती, सबके सोने पर,
रवि बटोर लेता है उनको
सदा सबेरा होने पर।  मैथिलीशरण गुप्त (पंचवटी)
इन पंक्तियों में गुप्त जी पृथ्वी, रात, ओस, सुबह, किरण, सूर्य, के द्वारा जो बिंब रचते हैं वे हमारे जीवन के अनुभवों से केवल मामूली समानता नहीं दिखलाते, बल्कि उस दृश्‍य के तरल, कांतिमय, दीप्‍त सौंदर्य को भी मूर्तिमान कर देते हैं ।

छायावादी कवियों की रचनाओं में अनेक प्रकार के बिंबो का विधान मिलता है। जैसे हम बीती विभावरी, जाग री कविता को लें। जयशंकर प्रसाद इस कविता में केवल दृश्‍य या ध्‍वनि-चित्र ही नहीं प्रस्‍तुत करते बल्कि गहन अनुभूतियों और संवेगों को भी संप्रेषित करते हैं। खग-कुल कुल-कुल सा बोल रहा,” यहां कुल-कुल ध्‍वनि का बिंब केवल पंक्षियों के कलरव का प्रभाव नहीं देता बल्कि देश, समाज तथा साहित्‍य में आते जागरण के उल्‍लास तथा उत्‍साह को भी व्‍यक्‍त करता है।

पश्चिम खासकर इंग्‍लैंड में 20 वीं सदी के आरंभ में (बिंबवाद) नाम से एक काव्‍य आंदोलन उभरा। स्‍वच्‍छंदता वाद काफी रोमानी, भावुक गीतिमयता का रूप धारण कर चुका था। इसके विरोध के रूप में बिंबवाद आया जो स्‍वच्‍छंदता वाद की आत्‍मपरकता और शिथिलता की जगह वस्‍तुपरकता, अनुशासन व्‍यवस्‍था और सटीकता पर बल देता है। इस विधा के अनुसार बिम्‍बात्‍मक भाषा चुस्‍त, तराशी हुई और सटीक होनी चाहिए। अनुशासन तथा संतुलन बरतने से काव्‍य में सूक्ष्‍मता, संक्षिप्ति और सुगठन आ जाएगी। बिम्बवादियों का मानना है कि कविता में हम आम बोलचाल की सामान्‍य भाषा का प्रयोग कर सकते हैं। जरूरी नहीं कि भाषा आलंकारिक या किताबी हो।
वह आता-
दो टूक कलेजे के करता
चाट रहे हैं जूठी पत्तल वे सभी सड़क पर खड़े हुए,
और झपट लेने को उनसे कुत्ते भी हैं अड़े हुए । निराला (भिक्षुक)

भाषा गुण संपन्‍न, शुष्‍क और स्‍पष्‍ट हो। शब्‍दावली सटीक और उपयुक्‍त हो। भाषा सहज-सरल कितुं अर्थ-गर्भित और व्‍यंजक होनी चाहिए। उसमें भावाकुलता नहीं होनी चाहिए किंतु वह संकेतात्‍मक तथा सूक्ष्म होनी चाहिए। केवल ऐसे शब्‍दों का नपातुला प्रयोग होना चाहिए जो इच्छित प्रभाव उत्‍पन्‍न कर सकें। ग्‍वालियर में मजदूरनों के जुलूस पर जब गोली चलाई गई तो शमशेर बहादुर सिंह के स्‍वर-चित्र देखिए
ये शाम है
कि आसमान खेत है पके हुए अनाज का
लपक उठी लहू-भरी दरातियां
कि आग है
धुँआ-धुँआ
सुलग रहा ग्‍वालियर के मजदूर का हृदय

जब बिंबों का प्रयोग करें कविता में तो कविता का तथ्‍य सामान्‍य नहीं बल्कि गूढ़ तथा व्‍यापक हो। उसमें अस्‍पस्‍टता न हो। भावमयता कविता को अस्‍पष्‍ट बना देती है। बिंब-विधान के माध्‍यम से विषय-वस्‍तु को अधिक गहराई से, अधिक स्‍पष्‍टता से कम शब्‍दों के माध्‍यम से व्‍य‍क्‍त किया जा सकता है।
आहुति-सी गिर चढी चिता पर
चमक उठी ज्वाला-सी। सुभद्राकुमारी चौहान (झांसी की रानी की समाधि)

चाक्षुष बिंब में चित्रात्मकता होती है। बिम्ब पारम्परिक ही नहीं नवीन भी होने चाहिए। नजर आ सकने वाली वस्‍तुओं से रचे गए बिंब कई बार पूरी कविता के कथ्‍य को स्‍पष्‍ट करने में समर्थ होते हैं।
अंग अंग नग जगमगत दीपसिखा-सी देह।
दिया बढ़ाये हू रहे बड़ौ उज्‍यारौ गेह॥ बिहारी

छोटी छोटी सामान्‍य वस्‍तुओं में भी सौंदर्य छिपा होता है। उनके सटीक, सुनिश्चित, संक्षिप्‍त वर्णन के माध्‍यम से उस सुंदरता का साक्षात्‍कार हो सकता है । शमशेर की एक कविता जाड़े की सुबह के सात आठ बजे से एक उदाहरण देखिए
उड़ते पंखों की परछाइयां
हल्‍के झाड़ू से धूप को समेटने की
कोशिश हो जैसे ...

धूप को समेटने की यह कोशिश व्‍यर्थ है क्‍योंकि अगर वह सिर्फ बाहर फैली हो, तो झाड़ु से समेटी जा सके पर ...
धूप मेरे अंदर भी
इस समय तो...
इस अंदर की धूप को पकड़ना और कवि से अलग करना कठिन हैं क्‍योंकि उसकी मानवीय संवेदना तो अंदर धंसी है।

बिम्‍बवादियों के अनुसार भौतिक वस्‍तु ही काव्‍य का विषय होती है इसलिए पाठक पर पहले बिंबों का ही प्रभाव पड़ता है और उनका महत्‍व कवि के कथ्‍य की अपेक्षा कम नहीं होता। बिंबों के साथ विचार भी जुड़े होते हैं। इसलिए बिंबरूप वस्‍तु का ग्रहण करने के बाद पाठक विचार का भी ग्रहण करता है।
है अमा-निशा; उगलता गगन धन अन्‍धकार;
खो रहा दिशा का ज्ञान; स्‍तब्‍ध है पवन-चार;
अप्रतिहत गरज रहा पीछे अम्‍बुधि विशाल;
भूधर ज्‍यों ध्‍यान-मग्‍न; केवल जलती मशाल।  निराला (राम की शक्ति पूजा)

अमावस्‍या के गहन अंधकार का जो बिंब है, वह पहले तो हमारे आगे उस बाहरी दृश्‍य को मूर्तिमान करता है। फिर वह प्रतीक बनकर हमें निराशा और ग्‍लानि के उस अंधेरे तक ले जाता है जो राम के मन में छाया हुआ है।

मनोदशाओं की अभिव्‍यक्ति के लिए कविता में नई लय का सृजन कर सकते हैं। मुक्‍त छंद में कवि की वैयक्तिकता अधिक अच्‍छी तरह अभिव्‍यक्‍त हो सकती है। शमशेर की कविता क्षीण नीले बादलों मेंढलती शाम और गहराती रात का चित्र है। देखने वाले की मनःस्थिति का अंकन भी साथ-साथ है
बादलों में दीर्घ पश्चिम का
आकाश
मलिनतम।
ढके पीले पांव
जा रही रूग्णा संध्‍या।
.................
नील आभा विश्‍व की
हो रही प्रति पल तमस।
विगत सन्‍ध्‍या की
रह गई है एक खिड़की खुली।
झांकता है विगत किसका भाव।
बादलों के घने नीले केश
चपलतम आभूषणों से भरे
लहरते हैं वायु - संग सब ओर।
बीमार शाम का पीलापन रात के गहरे अंधेरे में बदल रहा है। लेकिन इस समय चांद आसमान पर कुछ इस तरह है मानों बीत चुकी शाम की एक खिड़की सी खुली रह गई है। जैसे शाम बीत गई है, वेसे ही कवि के जीवन से किसी का भाव बीत चुका है। वह इस खुली खिड़की से झांकने लगता है। इसी खुली खिड़की की वजह से कवि के मन पर छाया अंधेरा उसे पूरी तरह ग्रस नहीं पाता।
शाम को ढ़लते रात में ढलते देखने वाला मन रूग्ण नहीं, इसका प्रमाण यह है कि बादल उसे आभूषणों से सजे धने नीले लहराते केश की तरह लग रहे हैं। बिंब इतना सशक्‍त प्रयोग अन्‍यत्र कहीं नहीं मिलता। शाम की नीलाहट, रात का अंधेरा, जाड़े की सुबह की कोमल धूप, सागर की लहरें ये सब कवि के संवेदनलोक के अभिन्‍न अंग है। प्रकृति के अलग अलग रंगों, उसकी अलग-अलग भंगिमाओं के साथ मानवीय संवेदनाओं का जो संबंध है, वह जितने सशक्‍त ढंग से अभिव्‍यक्‍त हुआ है।

बिम्‍बों के द्वारा कविता में अपनी बात कहने का एक और फायदा यह है कि हम संक्षिप्‍त और समान पर बल देकर अनावश्‍यक शब्‍द-जंजाल से मुक्ति पाते हैं। शमशेर के शक्तिशाली बिंब का एक उदाहरण
लगी हो आग जंगल में कहीं जैसे,
हमारे दिल सुलगते हैं,
......................
सरकारें पलटती है जहां
हम दर्द से
करवट बदलते हैं।
किसानों के देखकर उन किसानों के लिए शक्ति और ऊर्जा से भरा रूपक आदिवासियों का भव्‍य चित्र खड़ा करते हैं
ये वही बादल घटाटोपी
बिजलियां जिनमें चमकती?
खून में जिनके कड़क ऐसी, कि
गोलियां चलती
...... ......
इनकी आंखों में तड़कती धूप
सख्‍त बंजर की।

शमशेर ने प्रकृति के कुछ अत्‍यंत अछूते बिंब और उनसे जुड़ी हुई अपनी खास संवेदना के चित्र हिंदी कविता को दिए हैं । जो उनके अलावा कहीं नहीं मिलते
संवलाती ललाई के लिपटा हुआ काफी ऊपर
तीन चौथाई खामोश गोल सादा चांद
रात में ढलती हुई तमतमायी सी
लाजभरी शाम के
अंदर
वह सफेद मुख
किसी ख्‍याल के बुखार का
एक बात का ध्‍यान रखें कि बिंब धर्मिता को कविता का एकमात्र गुण मानकर हम उसके क्षेत्र को सीमित कर देंगे। कई बार अधिक बिंब दिखा कर हम काव्‍य में अभिव्‍यक्ति को प्रमुखता तो देते हैं पर कथ्‍य गौण हो जाता है। इसलिए सीमितता और एकरूपता से बचने के लिए भाषा के अन्‍य प्रयोगों पर भी ध्‍यान दें।

No comments:

Pages

Submitting Income Tax Returns: Last Date Extended to Aug 31:Notification : ITR Forms :e-file Help:E-filing Link.

© hindiblogg-a community for hindi teachers
  

TopBottom