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कितनी गजब की बात है खाना सभी को चाहिए मगर अन्न कोई उपजाना नही चाहता, पानी सभी को चाहिए लेकिन तालाब कोई खोदना नही चाहता। पानी के महत्त्व को समझे। और आवश्यकता अनुसार पानी का इस्तेमाल करे।
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24 September 2012

जीवनी तैयार करें।


1 comment:

MALAPPURAM SCHOOL NEWS said...

दार्शनिक भाव से अक्सर यह कहा जाता है कि शरीर तो रोगों का घर है। लाखों-करोड़ों अदृश्य बैक्टीरिया और संक्रामक विषाणु कब और कैसे हमारे शरीर में नामालूम बीमारी के बीज रोप दें, कहा नहीं जा सकता। इसी तरह कब शरीर की कुछ कोशिकाएं असामान्य ढंग से विकसित होने लगें और उनमें कब कोई विकृति आ जाए, इसका भी कुछ ठीक-ठीक पता नहीं चलता है। बचपन से तमाम टीके लगवाकर और अनगिनत दवाएं और टॉनिक लेकर जिस्म को मजबूत बनाने की कोशिश तो की जाती है, पर इन कोशिशों में शायद कोई कमी रहती आई है, जिससे कैंसर जैसे खतरनाक रोग दुनिया की सेहत पर लगातार ग्रहण लगाते रहे हैं। हाल के दशकों में लाइलाज मानी जाने वाली बीमारी- कैंसर पर चिकित्सा जगत ने कुछ काबू पाया है; यह सफलता तो पाई ही है कि अब 'कैंसर' शब्द हमारे दिलोदिमाग में पहले जैसा भय नहीं रोपता है, पर अभी तकरीबन 20 प्रकारों वाले इस रोग से पूरी तरह निजात मिलना थोड़ा मुश्किल दिख रहा है। हालांकि चेन्नै स्थित अड्यार कैंसर इंस्टिट्यूट की निदेशक, मैगसायसाय अवॉर्ड पाने वाली डॉक्टर वी. शांता जैसे कैंसर से जंग को कमिटेड लोगों की भी दुनिया में कमी नहीं है, जिनकी कोशिशें विराट उम्मीदों की लौ जलाए हुए हैं। वी. शांता ने कैंसर रोग के व्यापक अध्ययन और उसके इलाज के क्षेत्र में जो महारत और प्रतिबद्धता दर्शाई है, उससे हजारों मरीज इस खतरनाक बीमारी के शिकंजे से बाहर निकले हैं। जीवन बचाने का जो पुण्य उन्होंने कमाया है, निश्चित ही उसके सामने मैगसायसाय अवॉर्ड जीतने की खुशी खास मायने नहीं रखती। यह एक मिसाल है, तो ऐसी एक और मिसाल हैं अमेरिका के मैसाचुसेट्स इंस्टिट्यूट की बायोलॉजिकल इंजीनियरिंग इकाई में काम करने वाले प्रोफेसर राम शशिशेखरन। शशिशेखरन ने कैंसर उपचार की दो सर्वाधिक प्रचलित विधियों- कीमोथेरेपी और एंटीएंजियोजेनेसिस में नैनोटेक्नोलॉजी तकनीक का समावेश करके ऐसे तरीके का आविष्कार किया है, जिससे कैंसर पर पूर्ण लगाम लग सकती है। अभी तक इन विधियों से इलाज में कैंसरग्रस्त कोशिकाओं के सटीक उपचार में कुछ खामियां भी रह जाती थीं, जिन्हें दूर किए जाने की जरूरत महसूस हो रही थी। शशिशेखरन ने दोनों प्रचलित विधियों का सहारा लेते हुए नैनोसेल्स तकनीक से कैंसरग्रस्त कोशिकाओं के उपचार के लिए एक बैलून विधि का विकास किया है। कैंसर कोशिकाओं के दोहरे इलाज का यह तरीका फिलहाल प्रयोगात्मक चरण में है, पर उम्मीद है कि आने वाले दिनों में ये आधुनिक तकनीकें कैंसर पर विजय पा ही लेंगी।

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