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कितनी गजब की बात है खाना सभी को चाहिए मगर अन्न कोई उपजाना नही चाहता, पानी सभी को चाहिए लेकिन तालाब कोई खोदना नही चाहता। पानी के महत्त्व को समझे। और आवश्यकता अनुसार पानी का इस्तेमाल करे।
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13 November 2015

रहीम भारतीय सहित्य जगत के उच्चतम कवि हैं. उनके लिखे दोहे और उक्त्यियों को अगर जीवन में अमल करा जाए तो बहुत फायदा होगा. रहीम के कई दोहे और अब हाजिर हैं कुछ अन्य..
खीरा सिर ते काटिये, मलियत नमक लगाय।
रहिमन करुये मुखन को, चहियत इहै सजाय॥
अर्थ: खीरे को सिर से काटना चाहिए और उस पर नमक लगाना चाहिए। यदि किसी के मुंह से कटु वाणी निकले तो उसे भी यही सजा होनी चाहिए।
जे गरीब पर हित करैं, हे रहीम बड़ लोग।
कहा सुदामा बापुरो, कृष्ण मिताई जोग॥
अर्थ: जो गरीब का हित करते हैं वो बड़े लोग होते हैं। जैसे सुदामा कहते हैं कृष्ण की दोस्ती भी एक साधना है।
चाह गई चिंता मिटी, मनुआ बेपरवाह।
जिनको कछु नहि चाहिये, वे साहन के साह
अर्थ: जिन्हें कुछ नहीं चाहिए वो राजाओं के राजा हैं। क्योंकि उन्हें ना तो किसी चीज की चाह है, ना ही चिंता और मन तो बिल्कुल बेपरवाह है।
रहिमन देख बड़ेन को, लघु न दीजिये डारि।
जहाँ काम आवै सुई, कहा करै तलवारि॥
अर्थ: बड़ों को देखकर छोटों को भगा नहीं देना चाहिए। क्योंकि जहां छोटे का काम होता है वहां बड़ा कुछ नहीं कर सकता। जैसे कि सुई के काम को तलवार नहीं कर सकती।
जो रहीम गति दीप की, कुल कपूत गति सोय।
बारे उजियारो लगे, बढ़े अँधेरो होय॥
अर्थ: दीपक के चरित्र जैसा ही कुपुत्र का भी चरित्र होता है। दोनों ही पहले तो उजाला करते हैं पर बढ़ने के साथ-साथ अंधेरा होता जाता है।
बड़े काम ओछो करै, तो न बड़ाई होय।
ज्यों रहीम हनुमंत को, गिरिधर कहे न कोय॥
अर्थ: जब ओछे ध्येय के लिए लोग बड़े काम करते हैं तो उनकी बड़ाई नहीं होती है। जब हनुमान जी ने धोलागिरी को उठाया था तो उनका नाम कारन गिरिधरनहीं पड़ा क्योंकि उन्होंने पर्वत राज को छति पहुंचाई थी, पर जब श्री कृष्ण ने पर्वत उठाया तो उनका नाम गिरिधरपड़ा क्योंकि उन्होंने सर्व जन की रक्षा हेतु पर्वत को उठाया था|

माली आवत देख के, कलियन करे पुकारि।
फूले फूले चुनि लिये, कालि हमारी बारि॥

अर्थ: माली को आते देखकर कलियां कहती हैं कि आज तो उसने फूल चुन लिया पर कल को हमारी भी बारी भी आएगी क्योंकि कल हम भी खिलकर फूल हो जाएंगे।
रहिमन यहि संसार में, सब सो मिलिए धाइ ।
ना जाने केहि रूप में, नारायण मिलि जाइ ।।
   इस संसार में प्यार करने लायक दो वस्तुएँ हैं-एक दु:ख और दूसरा श्रम। दुख के बिना हृदय निर्मल नहीं होता और श्रम के बिना मनुष्यत्व का विकास नहीं होता।

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